वे कौन होते है यह तय करने वाले कि कौन देशभक्त है और कौन नहीं...? 
 


    जब से भाजपा का राज आया है दलित और अल्प संख्यक विरोधी घटनाओं में बढ़ोत्तरी हुई है, यह अखबारों से जाहिर हैं। भाजपा और आर एस एस दोनों एक ही हैं और हिन्दू समर्थक हैं। आर एस एस सामाजिक संगठन का नकाब पहने हुए है लेकिन तन, मन, धन और जीवन से राजनैतिक संगठन भाजपा के साथ है। इनके देशभक्ति के अपने माप दण्ड है जिनकी पहली शर्त सवर्ण हिन्दू होना है। देशभक्ति की कसौटी पर ये दलितों और मुस्लिमों को ही कसते आये हैं। ये सवर्ण हिन्दुओं को शक की नजर से नहीं देखते या देखते हुए भी नजरअन्दाज़ कर देते हैं जो सरे आम देश की गोपनीय जानकारियां दुश्मन देश को रुपयों के लालच में बेच देते हैं, सेना भर्ती में घूस खाकर गलत लोगों का चयन करवाते हैं, भ्रष्टाचार करते हैं, मिलावट करते हैं, नकली दवाईयां बेचते हैं या फिर पशुवध से लाभ कमाने हेतू कत्लखानों के खोलने की इजाजत चाहते हैं। अगर यही कार्य कोई दलित या मुस्लिम करे, और उसका भेद खुल जाये, तो उसे जान देकर इसकी कीमत चुकानी पड़ती है या मारे-मारे फिरना पड़ता है।

   ’’यह देश हिन्दुओं का है और यहां का रहने वाला प्रत्येक नागरिक हिन्दू है (या होना चाहिये)’’ यह तालिबानी या संकीर्ण सोच है। देखा जाये तो जो हिन्दु हैं, वे आज तक अपने देश की भाषा में अपना नाम तक नहीं खोज पाये है क्योंकि हिन्दु, हिन्दी, हिन्दुस्तान आदि शब्द फारसी भाषा के हैं जो कि फारस (इराक) की भाषा है।

    जहाँ तक नागरिकता का सवाल है, हमारे देश में विभिन्न प्रजातियों-नेग्रिटो, निषाद, द्रविड़, आदि आदिकाल से ही रहते आये हैं, जिनका हिन्दुओं से दूर-दूर तक का नाता नहीं रहा है। इसके बाद विश्व प्रसिद्ध सिन्धु घाटी सभ्यता का उदय हुआ, जो कि व्यापार प्रधान सभ्यता थी। इसके बाद वैदिक सभ्यता के वाहक आर्यों का आगमन हुआ जो कृषि प्रधान सभ्यता थी। तत्पश्चात जैन और बौद्ध धर्म का प्रादुर्भाव हुआ और इस्लाम धर्म का आगमन हुआ। इसी बीच सिख धर्म का जन्म हुआ और ईसाई धर्मावलम्बियों का आगमन हुआ। इन सभी के मूल्य, आचार-विचार, सभ्यता और संस्कृति एक दूसरे से भिन्न रहे हैं और इस सभी का मिश्रण भारतीय सभ्यता और संस्कृति में समाया हुआ है। हमारे खानपान, रहन-सहन, पहनावे, वास्तुकला, ललितकला और जीवन के कई अन्य भागों में विभिन्न संस्कृतियों के अवयव समाये हुए हैं। जो भारतीय संस्कृति को मात्र हिन्दू संस्कृति कहते हैं, वे भारी भूल में हैं और उनको भारतीय इतिहास की पूरी जानकारी नहीं है।

    रही बात देशभक्त अथवा देशद्रोही होने की, तो देशभक्त अथवा देशद्रोही होना किसी भी व्यक्ति, जाति अथवा धर्म के माथे पर नहीं लिखा रहता है। मात्र देश के विरूद्ध युद्ध छेड़ना या युद्ध जैसा कार्य करना ही देशद्रोह नहीं है बल्कि देश की गोपनीय जानकारियां दुश्मन देश को रुपयों के लालच बेच देने जैसे उपरोक्त वर्णित सैंकड़ों कार्य देशद्रोह ही है। जैसा कि पूर्व में लिखा जा चुका है, कोई भी देशभक्त या देशद्रोही हो सकता है। भारतीय इतिहास से कुछ बानगियां हैंः-

1. पृथ्वीराज चौहान का धुर विरोधी जयचन्द (गद्दारी का पर्याय) हिन्दु ही था जिसने पृथ्वीराज के खिलाफ मुहम्मद गौरी का साथ दिया।

2. मुगलकाल में अनेक हिन्दु राजे-महाराजे (विशेष रूप से जयपुर और जोधपुर घराने) अपना राज बचाने के लिये न केवल उनका साथ दे रहे थे, बल्कि उनसे वैवाहिक सम्बन्ध भी कायम किये। ये हिन्दुओ के खिलाफ ही मुगलों की तरफ से लड़े।

3. इसी प्रकार ब्रिटिश काल में भी कई राजा-महाराजा भारतीयों के विरुद्ध अंग्रेजों का साथ दे रहे थे।

4. वर्तमान में नित-प्रतिदिन देश की गोपनीय जानकारियां दुश्मन देश को रुपयों के लालच बेच देने के आरोप में हिन्दु भी पकड़ में आ रहे हैं और मुसलमान भी (12 जनवरी 2016 को सीमा सुरक्षा बल रायसिंह नगर में बी एस एफ का हवलदार प्रेमसिंह गिरफ्तार किया गया, उसके पहले बी एस एफ का ही जवान अनिल कुमार गिरफ्तार किया गया था। 27 दिसम्बर 2015 को सेना का पूर्व हवलदार और वर्तमान में खेतोलाई का पटवारी गोवर्धन सिंह भी इसी आरोप में गिरफ्तार किया गया। इसका साथी ताराराम जो कि भू अभिलेख निरीक्षक है  वह भी पकड़ में आया है। अब भी रोज ही कोई न कोई हिन्दु देशद्रोह के मामले में पकड़ में आता है जो अखबारों में छपता भी है।) इनके बारे में भाजपा और आर एस एस के क्या ख्याल है?

अब कुछ राष्ट्रभक्त मुसलमानों के उदाहरण लेते हैं-

1.हकीम खाँ सूरी अकबर के विरुद्ध महाराणा प्रताप का साथ देते हुए लड़े।

2.परमवीर चक्र विजेता अलबर्ट इक्का, सूबेदार जोगेन्द्रसिंह और अब्दुल हमीद क्रमशः ईसाई, सिख और मुस्लिम धर्म के अनुयायी थे। (माफ कीजियेगा, शहीदों और महापुरुषों को इस प्रकार धर्म के आधार पर विभाजित करना बिलकुल अनुचित है, परन्तु जब देश के शीर्ष पदाधिकारी और नेता इस प्रकार का विश्वास रखते हैं तो उनको आइना दिखाना जरूरी हो जाता है।)

3. विभिन्न क्षेत्रों में देश के लिये कार्य करने वाले जैसे सानिया मिर्ज़ा, मेरीकाम, उस्ताद जाकिर खाँ, उस्ताद

  बिस्मिल्लाह खान, नौशाद, मेहबूब खान, ख्वाजा अहमद अब्बास, मिल्खा सिंह, रतन टाटा आदि विभिन्न धर्मों के हैं।

अतः भूतकाल और वर्तमान को देखते हुए यह तय करना है कि भारत मात्र हिन्दुओं के लिये ही नहीं है। अपने ही बनाये हुए एक गीत पर आर एस एस गौर करे जो कि 1990 के आस पास संघ शिक्षा वर्गों में खूब गाया जाता थाः-

इस धरती को जिसने माना, माँ प्राणों से प्यारी।

हिन्दू वही है हिन्दूराष्ट्र का, सच्चा वही पुजारी।।

भारत माँ जयकारी।।

अतः देशभक्त और देशद्रोही कोई भी हो सकता है और इसका धर्म तथा जाति से कोई ताल्लुक नहीं है। प्रयत्न यह होना चाहिये कि देशभक्त का सम्मान हो और देशद्रोही को कठोर दण्ड मिले, बिना यह देखे कि वह किस जाति और किस धर्म का है। साथ ही इन तथाकथित देशभक्त संगठनों को किसी के बारे में कुछ कहने से पहले यह देख लेना चाहिये कि देश की आजादी में खुद का क्या योगदान रहा है ? बाद में लड़े गये युद्धों में क्या बहुदुरी दिखाई ? तब ही औरों की ओर अंगुली उठा सकते है। अकेले आदमी या मासूम बच्चों को घर में घेर कर मार देना या जिन्दा जला देना ठीक उसी प्रकार की कायरता है जिस प्रकार की महाभारत के युद्ध में अभिमन्यु वध के समय प्रत्यक्ष हुई थी। इतिहास ऐसे प्रसंगों को कभी नही भूलता है।

 

 

-श्याम सुन्दर बैरवा

 

फोटो गुगल से साभार